Wednesday, May 13, 2020

सच की राह पर चला मैं

जीवन की रणभूमि में
सहकर लाखों बाण था बढ़ा मैं,

परिश्रम की सघन ज्वाला में
तिल तिल कर जला मैं,

पीकर भीतर आंसू मन में
गहन जज्बातों से लड़ा मैं,

इस कपटी दुनिया में
झूट से रंचक ना डरा मैं,

काली अंधियारी गहरी रातों में
बन इकलौता दिया जला मैं,

फिर क्यों तेरे न्यायलय में
हूं कैदी बन आन पड़ा मैं,

करो गौर नेकी के उपाय में
ना करो देर अब न्याय मैं,

प्रभु तेरे दरबार में
हूं हाथ जोड़ खड़ा मैं,

सच की राह पर चला मैं
सच की रहा पर चला मैं....।।।

-ऋषभ वशिष्ठ

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