लोग पूछते हैं
क्यों है रंगत तुम्हारी
उड़ी- उड़ी सी,
और शख्सियत तुम्हारी
बुझी बुझी सी,
यूं गुम सुम
कहां तुम खो गए हो,
क्या बात है जो
चुप- चाप छिप कर रो रहे हो,
आंखों से तुम्हारे,
क्यों ये आंसू नहीं रुक रहे हैं,
किस चीज़ का दर्द है
जो मन ही मन घुट रहे हो,
चेहरे से तुम्हारे
रंगत कहां अब उड़ गई है,
क्यों हंसते नहीं अब
मानो खुशी जैसे खो गई है,
माथे पर क्यों तुम्हारे
कसक की लकीरें तनी हुई हैं,
क्या कोई बात है
जो दिल में कहीं दबी हुई है,
क्यों फितरत तुम्हारी
ऐसे बदल रही है,
कुछ देर तो बातें करो
ऐसी भी क्या जल्दी हो रही है,
क्या गम है
जो तुम्हे सता रहा है,
कुछ तो है जो तुम्हे
तुमसे जुदा बना रहा है,
क्यों वजन तुम्हारा
इतना घट गया है,
खाते नहीं कुछ
क्यों इतने दुबले हो गए हो,
तुम तो ठीक थे
क्यों अब इतने परेशां हो गए हो,
कुछ तो बोला करो
क्यों ख़ामोश इतने हो गए हो,
आज कल तुम
ये सब क्या कर रहे हो,
थोड़ा तो आराम करो
क्यों काम पर इतना मर रहे हो,
होता नहीं यकीं
तुम इतने क्यों बदल गए हो,
कुछ तो साझा किया करो
क्यों पराए हो गए हो,
हैं पूछते लोग....।।।
-ऋषभ वशिष्ठ
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